कक्षा 10 की एनसीईआरटी हिंदी पाठ्यपुस्तक "क्षितिज भाग 2" में शामिल "संगतकार" प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल की एक संवेदनशील और गहन कविता है। मंगलेश डबराल समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख कवियों में से एक हैं, जिनकी कविताओं में मानवीय संवेदनाओं, समाज, और जीवन की वास्तविकताओं का सुंदर चित्रण मिलता है.
"संगतकार" कविता में मंगलेश डबराल ने उन कलाकारों का चित्रण किया है जो मुख्य कलाकारों के साथ मिलकर कला का निर्माण करते हैं, लेकिन स्वयं अक्सर परदे के पीछे रह जाते हैं। "संगतकार" वह व्यक्ति होता है जो मुख्य गायक या कलाकार की संगत करता है, उसकी प्रस्तुति को और भी सुंदर बनाता है, परंतु उसकी पहचान और योगदान को अक्सर उतनी प्रशंसा नहीं मिलती जितनी कि मुख्य कलाकार को मिलती है.
कविता में डबराल ने संगतकार की भूमिका को अत्यंत सम्मान और संवेदना के साथ प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे संगतकार अपने जीवन में निःस्वार्थ भाव से कला की सेवा करता है, लेकिन उसकी मेहनत और कला का सही मूल्यांकन समाज में कम ही हो पाता है.
"संगतकार" कविता के माध्यम से मंगलेश डबराल ने जीवन की उन भूमिकाओं और व्यक्तियों पर ध्यान केंद्रित किया है जो किसी भी कला या कार्य की सफलता के लिए अनिवार्य होते हैं, लेकिन अक्सर उन्हें उनकी भूमिका का श्रेय नहीं मिल पाता। यह कविता हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि जीवन में हर छोटी से छोटी भूमिका का भी अपना महत्त्व होता है, और हमें सभी का सम्मान करना चाहिए.
"संगतकार" कविता का महत्त्व इस बात में है कि यह उन अनदेखे नायकों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है जो किसी भी सफलता के पीछे होते हैं। मंगलेश डबराल की यह कविता छात्रों को यह समझने में मदद करती है कि हर व्यक्ति का योगदान महत्त्वपूर्ण है, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो। यह कविता न केवल कला और संगीत के क्षेत्र में बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में टीम वर्क और सहयोग के महत्व को रेखांकित करती है.